Thursday, August 20, 2009

कद्र कीजिए नातों की ( ग़ज़ल )

कद्र कीजिए नातों की,
दिल से दिल की बातों की।

अक्सर बहुत रुलाती हैं,
यादें कुछ आघातों की।

सूरज वो जो धो डाले,
सारी स्याही रातों की।

क्या-क्या रंग दिखाती हैं,
चन्द लकीरें हाथों की।

देखे ऐसे लोग बहुत,
खाते जो बस बातों की।


पढ़ो इबारत फुरसत में,
अपने दिल के खातों की।


किस्मत याद दिला देती,
सब को ही औकातों की।

खाली हाथ, मगर दिल में,
दौलत हो जज़्बातों की।


-हेमन्त 'स्नेही'
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