ज़िन्दगी यों गुज़रनी चाहिए.
आदमीयत निखरनी चाहिए.
जो परेशां करे किसी को भी,
बात ऐसी न करनी चाहिए.
लोग हमको न बेवफा कह दें ,
सोच कर रूह डरनी चाहिए।
दर्द दिल में रहें दफ़न कितने,
मुस्कराहट बिखरनी चाहिए.
काश, कुछ काम वो करें जिससे,
कोई किस्मत संवरनी चाहिए.
ठेस गर आपको लगे कोई,
आँख मेरी भी भरनी चाहिए.
हो न जज़्बा अगर निभाने का,
दोस्ती ही न करनी चाहिए।
-हेमन्त 'स्नेही'
*
Saturday, February 14, 2009
Sunday, February 8, 2009
कुछ पंक्तियाँ, नभाटा के सहयोगियों के नाम...
सुबह गुज़रती और शाम कट जाती है,
मगर हमेशा याद आपकी आती है।
अख़बारों के साथ सुबह दस्तक कोई,
हर दिन मेरा दरवाज़ा खटकाती है।
ख़बरों के ही बीच झरोखे से अक्सर,
कोई शक्ल उभर कर कुछ मुस्काती है।
किसी पृष्ठ पर कहीं चुटीली सी फब्ती,
किसी कलम की कारीगरी दिखाती है।
हर दिन कुछ पन्ने मोहक बन जाते हैं,
मित्रों की प्रतिभा जब रंग जमाती है।
जिनको अक्सर याद किया करते हैं हम,
क्या उनको भी याद हमारी आती है !
-हेमन्त 'स्नेही'
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मगर हमेशा याद आपकी आती है।
अख़बारों के साथ सुबह दस्तक कोई,
हर दिन मेरा दरवाज़ा खटकाती है।
ख़बरों के ही बीच झरोखे से अक्सर,
कोई शक्ल उभर कर कुछ मुस्काती है।
किसी पृष्ठ पर कहीं चुटीली सी फब्ती,
किसी कलम की कारीगरी दिखाती है।
हर दिन कुछ पन्ने मोहक बन जाते हैं,
मित्रों की प्रतिभा जब रंग जमाती है।
जिनको अक्सर याद किया करते हैं हम,
क्या उनको भी याद हमारी आती है !
-हेमन्त 'स्नेही'
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